Hope Poetry (page 113)
पाते हैं कुछ कमी सी तस्वीर-ए-ज़िंदगी में
अज़ीज़ तमन्नाई
ख़ल्वत हुई है अंजुमन-आरा कभी कभी
अज़ीज़ तमन्नाई
करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर
अज़ीज़ तमन्नाई
करो तलाश हद-ए-आसमाँ मिलने न मिले
अज़ीज़ तमन्नाई
जिस को चलना है चले रख़्त-ए-सफ़र बाँधे हुए
अज़ीज़ तमन्नाई
हर एक रंग में यूँ डूब कर निखरते रहे
अज़ीज़ तमन्नाई
अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है
अज़ीज़ तमन्नाई
कमाल-ए-हुस्न का जब भी ख़याल आया है
अज़ीज़ साबरी
रसूल-ए-काज़िब
अज़ीज़ क़ैसी
रफ़्तगाँ
अज़ीज़ क़ैसी
नाला-ए-बे-आसमाँ
अज़ीज़ क़ैसी
मैं वफ़ा का सौदागर
अज़ीज़ क़ैसी
कावाक
अज़ीज़ क़ैसी
ग़रीब शहर
अज़ीज़ क़ैसी
फ़स्ल-ए-राएगाँ
अज़ीज़ क़ैसी
कंफ़ेशन
अज़ीज़ क़ैसी
चोर-बाज़ार
अज़ीज़ क़ैसी
बाक़ीस्त शब-ए-फ़ित्ना
अज़ीज़ क़ैसी
अज़ल-अबद
अज़ीज़ क़ैसी
तमीज़ अपने में ग़ैर में क्या तुम्हें जो अपना न कर सके हम
अज़ीज़ क़ैसी
पस-ए-तर्क-ए-इश्क़ भी उम्र-भर तरफ़-ए-मिज़ा पे तरी रही
अज़ीज़ क़ैसी
मिटा के अंजुमन-ए-आरज़ू सदा दी है
अज़ीज़ क़ैसी
जितने थे रंग हुस्न-ए-बयाँ के बिगड़ गए
अज़ीज़ क़ैसी
अपनों के करम से या क़ज़ा से
अज़ीज़ क़ैसी
आह-ए-बे-असर निकली नाला ना-रसा निकला
अज़ीज़ क़ैसी
तमाम शहर को तारीकियों से शिकवा है
अज़ीज़ नबील
ये किस वहशत-ज़दा लम्हे में दाख़िल हो गए हैं
अज़ीज़ नबील
ये किस मक़ाम पे लाया गया ख़ुदाया मुझे
अज़ीज़ नबील
वक़्त की आँख में सदियों की थकन है, मैं हूँ
अज़ीज़ नबील
उस की सोचें और उस की गुफ़्तुगू मेरी तरह
अज़ीज़ नबील