Hope Poetry (page 114)
सुब्ह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी
अज़ीज़ नबील
सुब्ह और शाम के सब रंग हटाए हुए हैं
अज़ीज़ नबील
मिरा सवाल है ऐ क़ातिलान-ए-शब तुम से
अज़ीज़ नबील
मैं नींद के ऐवान में हैरान था कल शब
अज़ीज़ नबील
ख़याल-ओ-ख़्वाब का सारा धुआँ उतर चुका है
अज़ीज़ नबील
ख़ाक चेहरे पे मल रहा हूँ मैं
अज़ीज़ नबील
इस बार हवाओं ने जो बेदाद-गरी की
अज़ीज़ नबील
हयात-ओ-काएनात पर किताब लिख रहे थे हम
अज़ीज़ नबील
धूप के जाते ही मर जाऊँगा मैं
अज़ीज़ नबील
बातों में बहुत गहराई है, लहजे में बड़ी सच्चाई है
अज़ीज़ नबील
अगरचे ज़ेहन के कश्कोल से छलक रहे थे
अज़ीज़ नबील
ये तेरी आरज़ू में बढ़ी वुसअत-ए-नज़र
अज़ीज़ लखनवी
मिरे दहन में अगर आप की ज़बाँ होती
अज़ीज़ लखनवी
लुत्फ़-ए-बहार कुछ नहीं गो है वही बहार
अज़ीज़ लखनवी
झूटे वादों पर थी अपनी ज़िंदगी
अज़ीज़ लखनवी
बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना
अज़ीज़ लखनवी
लज़्ज़त-ए-ग़म
अज़ीज़ लखनवी
ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते
अज़ीज़ लखनवी
ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं
अज़ीज़ लखनवी
वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं
अज़ीज़ लखनवी
तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
अज़ीज़ लखनवी
रस्म ऐसों से बढ़ाना ही न था
अज़ीज़ लखनवी
क्यूँ न हो शौक़ तिरे दर पे जबीं-साई का
अज़ीज़ लखनवी
कुछ हिसाब ऐ सितम ईजाद तो कर
अज़ीज़ लखनवी
काश सुनते वो पुर-असर बातें
अज़ीज़ लखनवी
कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की
अज़ीज़ लखनवी
जो यहाँ महव-ए-मा-सिवा न हुआ
अज़ीज़ लखनवी
जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए
अज़ीज़ लखनवी
जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए
अज़ीज़ लखनवी
इंतिहा-ए-इश्क़ हो यूँ इश्क़ में कामिल बनो
अज़ीज़ लखनवी