Love Poetry (page 10)
पता कैसे चले दुनिया को क़स्र-ए-दिल के जलने का
इक़बाल साजिद
मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में
इक़बाल साजिद
ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया
इक़बाल साजिद
ख़ुदा ने जिस को चाहा उस ने बच्चे की तरह ज़िद की
इक़बाल साजिद
ख़त्म रातों-रात उस गुल की कहानी हो गई
इक़बाल साजिद
इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना
इक़बाल साजिद
हर कसी को कब भला यूँ मुस्तरद करता हूँ मैं
इक़बाल साजिद
हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे
इक़बाल साजिद
ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला
इक़बाल साजिद
ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला
इक़बाल साजिद
इक रिदा-ए-सब्ज़ की ख़्वाहिश बहुत महँगी पड़ी
इक़बाल साजिद
दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया
इक़बाल साजिद
दहर के अंधे कुएँ में कस के आवाज़ा लगा
इक़बाल साजिद
अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की
इक़बाल साजिद
ऐसे घर में रह रहा हूँ देख ले बे-शक कोई
इक़बाल साजिद
वो निगाहों को जब बदलते हैं
इक़बाल सफ़ी पूरी
हर मोड़ नई इक उलझन है क़दमों का सँभलना मुश्किल है
इक़बाल सफ़ी पूरी
गुज़र गई जो चमन पर वो कोई क्या जाने
इक़बाल सफ़ी पूरी
गर्दिशों में भी हम रास्ता पा गए
इक़बाल सफ़ी पूरी
दामन-ए-दिल है तार तार अपना
इक़बाल सफ़ी पूरी
उस ने दिल से निकाल रक्खा है
इक़बाल पयाम
जिस का चेहरा गुलाब जैसा है
इक़बाल पयाम
अस्बाब यही है यही सामान हमारा
इक़बाल पयाम
ख़्वाहिशों के पेड़ से गिरते हुए पत्ते न चुन
इक़बाल नवेद
ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ
इक़बाल नवेद
दोस्तों के हू-ब-हू पैकर का अंदाज़ा लगा
इक़बाल नवेद
अगरचे पार काग़ज़ की कभी कश्ती नहीं जाती
इक़बाल नवेद
सरसर चली वो गर्म कि साए भी जल गए
इक़बाल मिनहास
नगर में रहते थे लेकिन घरों से दूर रहे
इक़बाल मिनहास
न कोई ग़ैर न अपना दिखाई देता है
इक़बाल मिनहास