Sufi Poetry (page 4)
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम
ग़ुलाम मौला क़लक़
आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम
ग़ुलाम मौला क़लक़
तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी
ग़ुबार भट्टी
मिरे मुद्दआ-ए-उल्फ़त का पयाम बन के आई
ग़ुबार भट्टी
बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं
ग़नी एजाज़
सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी
ग़ालिब
मय से ग़रज़ नशात है किस रू-सियाह को
ग़ालिब
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
ग़ालिब
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
ग़ालिब
शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
ग़ालिब
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
ग़ालिब
पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का
ग़ालिब
मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए
ग़ालिब
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
ग़ालिब
कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया
ग़ालिब
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
ग़ालिब
हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं
ग़ालिब
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है
ग़ालिब
हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या
ग़ालिब
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
ग़ालिब
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
ग़ालिब
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
ग़ालिब
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
ग़ालिब
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
ग़ालिब
बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार
ग़ालिब
क़दम क़दम पे हैं बिखरी हक़ीक़तें क्या क्या
फ़ुज़ैल जाफ़री
नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे
फ़ुज़ैल जाफ़री
है इबारत जो ग़म-ए-दिल से वो वहशत भी न थी
फ़ुज़ैल जाफ़री
हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन
फ़ितरत अंसारी
सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग
फ़िराक़ गोरखपुरी