वो दिल जिस ने हमें रुस्वा किया था
हम आज उस दिल को रुस्वा कर चुके हैं
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दरिया को किनारे से क्या देखते रहते हो
बुझ जाएगा इक रोज़ तिरी याद का शोला
ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है
एक लम्हा लौट कर आया नहीं
ख़ामोश खड़ा हूँ मैं दर-ए-ख़्वाब से बाहर
कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने
हमें तो इंतिज़ारी और ही थी
दिल पर किसी पत्थर का निशाँ यूँ ही रहेगा
रास्ते जिस तरफ़ बुलाते हैं
आँख ने धोका खाया था या साया था
अपनी ही रवानी में बहता नज़र आता है
हम ठहरे रहेंगे किसी ताबीर को थामे