अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
पुर-शोर उल्फ़त की निदा है अब भी
एक वक़्त में एक काम
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
दुनिया का न खा फ़रेब वीराँ है ये
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
चिड़िया के बच्चे
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
क़ौस-ए-क़ुज़ह