एक वक़्त में एक काम
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
रात
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
पानी में है आग का लगाना दुश्वार
पन चक्की
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
गर्मी का मौसम
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार