चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हारे
सच कहो
जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया
हवा और सूरज का मुक़ाबला
इंकार न इक़रार न तस्दीक़ न ईजाब
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर निकल
अस्लाफ़ का हिस्सा था अगर नाम-ओ-नुमूद