ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
क़ौस-ए-क़ुज़ह
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
दीन और दुनिया का तफ़रक़ा है मोहमल
अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
अल-हक़ कि नहीं है ग़ैर हरगिज़ मौजूद
चिड़िया के बच्चे
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार