अपने ही दिल अपनों का दुखाते हैं बहुत
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
चिड़िया के बच्चे
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार
अस्लाफ़ का हिस्सा था अगर नाम-ओ-नुमूद
है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
ऊँट
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम
जो साहिब-ए-मक्रमत थे और दानिश-मंद
अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र