कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
तितली कोई बे-तरह भटक कर
अपने आईना-ए-तमन्ना में
रात जब भीग के लहराती है