अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
चंद लम्हों को तेरे आने से
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
इक ज़रा रसमसा के सोते में
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
अपने आईना-ए-तमन्ना में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर