इक ज़रा रसमसा के सोते में
किस ने रुख़ से उलट दिया आँचल
हुस्न कजला गया सितारों का
बुझ गई माहताब की मशअल
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एक कम-सिन हसीन लड़की का
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
रात जब भीग के लहराती है
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
चंद लम्हों को तेरे आने से
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
अब्र में छुप गया है आधा चाँद