उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
रात जब भीग के लहराती है
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
तितली कोई बे-तरह भटक कर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या