दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
एक कम-सिन हसीन लड़की का
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
तितली कोई बे-तरह भटक कर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा