ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर