अब दुश्मन-ए-जाँ ही कुल्फ़त-ए-ग़म साक़ी
फ़रियाद लबों पर आ गया दम साक़ी
क्या दूर न होगी ये मिरी तिश्ना-लबी
मेरे मौला मेरे मुकर्रम साक़ी
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अफ़्लास अच्छा न फ़िक्र-ए-दौलत अच्छी
अंदाज़-ए-जफ़ा बदल के देखो तो सही
हर क़ल्ब पे बिजलियाँ गिराती आई
फूलों से तमीज़-ए-ख़ार पैदा कर लें
तुम तेशा-ए-बाग़बाँ से क्यूँ मुज़्तर हो
मिलना किस काम का अगर दिल न मिले
नाला तेरा नाज़ से बाला है
सरमाया-ए-ए'तिबार दे दें तुम को