मिलना किस काम का अगर दिल न मिले
चलना बेकार है जो मंज़िल न मिले
वस्त-ए-दरिया में ग़र्क़ होना बेहतर
उस कि नज़र में आ के साहिल न मिले
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फूलों से तमीज़-ए-ख़ार पैदा कर लें
नाला तेरा नाज़ से बाला है
तुम तेशा-ए-बाग़बाँ से क्यूँ मुज़्तर हो
अब दुश्मन-ए-जाँ ही कुल्फ़त-ए-ग़म साक़ी
सरमाया-ए-ए'तिबार दे दें तुम को
हर क़ल्ब पे बिजलियाँ गिराती आई
अफ़्लास अच्छा न फ़िक्र-ए-दौलत अच्छी
अंदाज़-ए-जफ़ा बदल के देखो तो सही