अंदाज़ जफ़ा बदल के देखो तो सही
पाँव से ये फूल मल के देखो तो सही
रंग गुल-कारी जबीन सज्दा
इक दिन घर से निकल के देखो तो सही
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अंदाज़-ए-जफ़ा बदल के देखो तो सही
अब दुश्मन-ए-जाँ ही कुल्फ़त-ए-ग़म साक़ी
तुम तेशा-ए-बाग़बाँ से क्यूँ मुज़्तर हो
सरमाया-ए-ए'तिबार दे दें तुम को
मिलना किस काम का अगर दिल न मिले
नाला तेरा नाज़ से बाला है
फूलों से तमीज़-ए-ख़ार पैदा कर लें
अफ़्लास अच्छा न फ़िक्र-ए-दौलत अच्छी
हर क़ल्ब पे बिजलियाँ गिराती आई