मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
साल-हा-साल और इक लम्हा
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
उस के और अपने दरमियान में अब
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से