चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
शर्म दहशत झिझक परेशानी
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
चाँद की पिघली हुई चाँदी में