ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
उस के और अपने दरमियान में अब
सर में तकमील का था इक सौदा
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें