ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ज़ब्त-ए-गिर्या