इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
ज़ब्त-ए-गिर्या
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला