ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं