बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर