गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
तुम गुनाहों से डर के जीते हो
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
आरज़ू के दिए जलाने से
दिल-जलों को सताने आए हैं
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
दर्द का जाम ले के जीते हैं