है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
फिर किसी बात का ख़याल आया
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद