एक मुद्दत सितम उठाने पर
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर