मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
सुना है चाह का दावा तुम्हारा
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
यही दर्द-ए-जुदाई है जो इस शब
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ
बुताँ के इश्क़ ने बे-इख़्तियार कर डाला
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री