जश्न होता है वहाँ रात ढले
मैं ही आईना-ए-दुनिया में चला आया हूँ
मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं अधूरा सा हूँ उस के अंदर
क्या पता जाने कहाँ आग लगी
मेरी आँखों से भी इक बार निकल
ख़ुद अपने क़त्ल का इल्ज़ाम ढो रहा हूँ अभी
तमाम शहर में बिखरा पड़ा है मेरा वजूद
न इंतिज़ार करो कल का आज दर्ज करो
ये कैसी आग मुझ में जल रही है
देखते रहते हैं ख़ुद अपना तमाशा दिन रात
तू ने ऐ वक़्त पलट कर भी कभी देखा है