न इंतिज़ार करो कल का आज दर्ज करो
ख़मोशी तोड़ दो और एहतिजाज दर्ज करो
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देखते रहते हैं ख़ुद अपना तमाशा दिन रात
मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मेरी आँखों से भी इक बार निकल
जश्न होता है वहाँ रात ढले
ख़ुद अपने क़त्ल का इल्ज़ाम ढो रहा हूँ अभी
मैं ने कैसे कैसे मोती ढूँडे हैं
तू ने ऐ वक़्त पलट कर भी कभी देखा है
मैं अधूरा सा हूँ उस के अंदर
क्या पता जाने कहाँ आग लगी
ये कैसी आग मुझ में जल रही है
तमाम शहर में बिखरा पड़ा है मेरा वजूद