मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1839) Peoples Rate This
मैं अधूरा सा हूँ उस के अंदर
मेरी आँखों से भी इक बार निकल
ख़ुद अपने क़त्ल का इल्ज़ाम ढो रहा हूँ अभी
तेरी दहलीज़ पे इक़रार की उम्मीद लिए
मैं ही आईना-ए-दुनिया में चला आया हूँ
ये कैसी आग मुझ में जल रही है
जश्न होता है वहाँ रात ढले
देखते रहते हैं ख़ुद अपना तमाशा दिन रात
हरीम-ए-दिल में ठहर या सरा-ए-जान में रुक
क्या पता जाने कहाँ आग लगी
मैं ने कैसे कैसे मोती ढूँडे हैं
तमाम शहर में बिखरा पड़ा है मेरा वजूद