तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारी
तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं
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गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार
या-रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए
काँटों की ज़बाँ सूख गई प्यास से या रब
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ़ सब दुरुस्त
ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था