'ग़ालिब' तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को
है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिखा था सो भी मिट गया
हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं
है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मसजूद
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है