फिर चर्ख़ पर आसमान-ए-पीर आया है
हर कूचे मैं वक़्त-ए-दार-ओ-गीर आया है
अगला सा न मजमा' है न अगले से वो लोग
याँ आन के हैरत में दबीर आया है
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या शाह-ए-नजफ़ थाम लो इस किश्वर को
अदना से जो सर झुकाए आला वो है
इस बज़्म को जन्नत से जो ख़ुश पाते हैं
परवाने को धुन शम्अ को लौ तेरी है
है रज़्म सरापा तो ज़बाँ और ही है
क्या क़ामत-ए-अहमद ने ज़िया पाई है
किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है
आदा को उधर हराम का माल मिला
इस दर पे हर एक शादमाँ रहता है
ऐ ख़िज़्र के रहबर मुझे गुमराह न कर
हम-शान-ए-नजफ़ न अर्श-ए-अनवर ठहरा