अब किसी दर्द का शिकवा न किसी ग़म का गिला
मेरी हस्ती ने बड़ी देर में पाया है मुझे
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(566) Peoples Rate This
तू अपने पिंदार की ख़बर ले कि रुख़ हवा का बदल रहा है
सिर्फ़ अल्फ़ाज़ पे मौक़ूफ़ नहीं लुत्फ़-ए-सुख़न
दिल-ए-बे-क़रार चला तो था गिला-ए-हयात लिए हुए
तिरी अदाओं की सादगी में किसी को महसूस भी न होगा
बरसों जो नज़र तूफ़ानों के आग़ोश में पलती रहती है
हवा से बादा निचोड़ें कली को जाम करें
आँसू भी बहा कर देख लिए सोज़-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ कम न हुआ
हर कड़े वक़्त पे आईना दिखाया है मुझे
है 'फ़रीदी' अजब रंग-ए-बज़्म-ए-जहाँ मिट रहा है यहाँ फ़र्क़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
शुऊर-ए-ज़ात थोड़ा सा दिल-ए-नादाँ में रखते हैं
हम ने माँगा था सहारा तो मिली इस की सज़ा
इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता