हम ने माँगा था सहारा तो मिली इस की सज़ा
घटते बढ़ते रहे हम साया-ए-दीवार के साथ
Anwar Masood
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Parveen Shakir
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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अब किसी दर्द का शिकवा न किसी ग़म का गिला
दिल में जिन्हें उतारते दिल से वही उतर गए
सिर्फ़ अल्फ़ाज़ पे मौक़ूफ़ नहीं लुत्फ़-ए-सुख़न
हम ने तन्हा-नशीनी ख़रीदी तो है रौनक़ ओ शोरिश-ए-अंजुमन बेच कर
है 'फ़रीदी' अजब रंग-ए-बज़्म-ए-जहाँ मिट रहा है यहाँ फ़र्क़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
तिरी अदाओं की सादगी में किसी को महसूस भी न होगा
मिलती है नज़र उन से तो खो जाते हैं हम और
दिल-ए-बे-क़रार चला तो था गिला-ए-हयात लिए हुए
शुऊर-ए-ज़ात थोड़ा सा दिल-ए-नादाँ में रखते हैं
बे-शौक़-ए-तलब बे-ज़ौक़-ए-नज़र बे-रंग थी उन की गुल-बदनी
मुफ़्त है ख़ून-ए-जिगर अज़्मत-ए-किरदार के साथ