क़ातिल

डायरी रोज़ बुलाती है मुझे लिखने को

एक मुद्दत से कोई शे'र नहीं लिक्खा है

मिरे सीने में भी इक दर्द उठा जाता है

तेरी यादें भी बहुत ज़ेहन में चिल्लाती हैं

पेन काग़ज़ मैं लूँ

और कोई नया शे'र लिखूँ

बैठ जाता हूँ सो मैं डायरी अपनी ले कर

मिसरे लिखता हूँ

मिटाता हूँ

मैं फिर लिखता हूँ

फेंक देता हूँ फिर उन मिसरों के काग़ज़ को मैं गोला कर के

फिर मिरे कमरे से

आहों की सदा आती है

देखता हूँ

तो वही सारे अधूरे मिसरे

डस्टबिन में पड़े दम तोड़ रहे होते हैं

मैं पस-ओ-पेश में पड़ जाता हूँ

उस लम्हा तब

और समझ में नहीं आता है मुझे इतना भी

मैं के शायर हूँ कोई

या के कोई क़ातिल हूँ

(537) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Qatil In Hindi By Famous Poet Mohsin Aftab Kelapuri. Qatil is written by Mohsin Aftab Kelapuri. Complete Poem Qatil in Hindi by Mohsin Aftab Kelapuri. Download free Qatil Poem for Youth in PDF. Qatil is a Poem on Inspiration for young students. Share Qatil with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.