क्या ख़बर थी हमें ये ज़ख़्म भी खाना होगा
तू नहीं होगा तिरी बज़्म में आना होगा
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(910) Peoples Rate This
वो बर्ग-ए-ख़ुश्क था और दामन-ए-बहार में था
अपना आप तमाशा कर के देखूँगा
सूरज चढ़ा तो फिर भी वही लोग ज़द में थे
जाम-ए-तही क़ुबूल न था ग़म समो लिए
बदन को रौंदने वालो ज़मीर ज़िंदा है
अज़्मत-ए-फ़न के परस्तार हैं हम
बे-ख़बर सा था मगर सब की ख़बर रखता था
नेमुल-बदल
हमारी जान पे दोहरा अज़ाब है 'मोहसिन'
एहतिमाम-ए-रसन-ओ-दार से किया होता है
क्या ज़रूरी है अब ये बताना मिरा
लफ़्ज़ तो हों लब-ए-गुफ़्तार न रहने पाए