रखते हैं जो अल्लाह की क़ुदरत पे भरोसा
दुनिया में किसी की वो ख़ुशामद नहीं करते
Ahmad Faraz
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Habib Jalib
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Gulzar
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वो नमाज़-ए-इश्क़ ही क्या जो सलाम तक न पहुँचे
दूर रह कर वतन की फ़ज़ा से जब भी अहबाब की याद आई
इक इंक़लाब-ए-मुसलसल है ज़िंदगी मेरी
निगाह-ए-फ़ितरत में दर-हक़ीक़त वो ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं है
ख़ुदा जाने ये सोज़-ए-ज़बत है या ज़ख़्म-ए-नाकामी
हम हिज्र की काली रातों में जब बिस्तर-ए-ख़्वाब पे जाते हैं
वज्ह-ए-सुकूँ न बन सकीं हुस्न की दिल-नवाज़ियाँ
फ़ैज़ान-ए-मोहब्बत न हुआ आम अभी तक
सोचा था उन से बात निभाएँगे उम्र भर
बाँधा था ख़ुद ही आप ने पैग़ाम-ए-इल्तिफ़ात
रास्ते में मिल गए तो पूछ लेते हैं मिज़ाज