सोचा था उन से बात निभाएँगे उम्र भर
ये आरज़ू भी तिश्ना-ए-तकमील रह गई
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दुनिया के इस इबरत-ख़ाने में हालात बदलते रहते हैं
रास्ते में मिल गए तो पूछ लेते हैं मिज़ाज
उन्हें ख़ुदा का अमल शर्मसार कर देगा
अजब बे-कैफ़ है रातों की तन्हाई कई दिन से
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का कुछ उन को ग़म नहीं
रखते हैं जो अल्लाह की क़ुदरत पे भरोसा
वो नमाज़-ए-इश्क़ ही क्या जो सलाम तक न पहुँचे
जुनूँ में मश्क़-ए-तसव्वुर बढ़ा रहा हूँ मैं
इक इंक़लाब-ए-मुसलसल है ज़िंदगी मेरी
बाँधा था ख़ुद ही आप ने पैग़ाम-ए-इल्तिफ़ात
वज्ह-ए-सुकूँ न बन सकीं हुस्न की दिल-नवाज़ियाँ