जंगलों में कोई पीछे से बुलाए तो 'मुनीर'
मुड़ के रस्ते में कभी उस की तरफ़ मत देखो
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दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़
शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने
ख़्वाहिश के ख़्वाब
लाई है अब उड़ा के गए मौसमों की बास
हमेशा देर कर देता हूँ
अब किसी में अगले वक़्तों की वफ़ा बाक़ी नहीं
बड़ी मुश्किल से ये जाना कि हिज्र-ए-यार में रहना
आँखों में उड़ रही है लुटी महफ़िलों की धूल
इन लोगों से ख़्वाबों में मिलना ही अच्छा रहता है
वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया
जानते थे दोनों हम उस को निभा सकते नहीं