छेड़े है उस को ग़ैर तो कहता है उस से यूँ
कोई खड़ा न हो पस-ए-दीवार देखना
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यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया
दफ़ीना घर में क्या था और तो हम बादा-नोशों के
मैं ने क्या और निगह से तिरे रुख़ को देखा
राँझा यही कहता था इधर देखियो मजनूँ
परेशाँ क्यूँ न हो जावे नज़ारा
कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
अगरचे दिल तो हमें तुम से कुछ अज़ीज़ नहीं
नख़्ल-ए-हिरमाँ को न थी बालीदगी
क्या अदा से आवे है दीवाना कर के सैर-ए-बाग़
ख़ुदा रक्खे ज़बाँ हम ने सुनी है 'मीर' ओ 'मिर्ज़ा' की
हाथ दोनों कफ़-ए-अफ़्सोस की सूरत लिक्खे
आस्तीं उस ने जो कुहनी तक चढ़ाई वक़्त-ए-सुब्ह