ये क्या सुलूक किया तू ने मुझ से दस्त-ए-जुनूँ
कि सी दिया मिरा दामन मिरे गरेबाँ से
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ऐ 'मुसहफ़ी' तू और कहाँ शेर का दावा
जम्अ रखते नहीं, नहीं मालूम
मर जाऊँगा मैं या वही जावेगा मुझे मार
एक नाले पे है मआश अपनी
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
बाग़ था उस में आशियाँ भी था
बद-गुमानी ने मुझे क्या क्या सताया क्या कहूँ
इक हर्फ़-ए-कुन में जिस ने कौन-ओ-मकाँ बनाया
मेरे दिल-ए-शिकस्ता को कहती है देख ख़ल्क़
गर अब्र घिरा हुआ खड़ा है
ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा
रात के रहने का न डर कीजिए