मिरी नज़र में गए मौसमों के रंग भी हैं
जो आने वाले हैं उन मौसमों से डरना क्या
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(406) Peoples Rate This
कुछ इस तरह से तेरा ग़म दिए जलाता था
ऐ मुश्फ़िक़-ए-मन इस हाल में तुम किस तरह बसर फ़रमाओगे
नज़र चुरा के वो गुज़रा क़रीब से लेकिन
सितम भी करता है उस का सिला भी देता है
हम पे तन्हाई में कुछ ऐसे भी लम्हे आए
क्यूँ ख़ल्वत-ए-ग़म में रहते हो क्यूँ गोशा-नशीं बेकार हुए
ग़म ही ले दे के मिरी दौलत-ए-बेदार नहीं
ये हाल है मिरे दीवार-ओ-दर की वहशत का
नक़्श गुज़रे हुए लम्हों के हैं दिल पर क्या क्या
गुज़र गए हैं जो दिन उन को याद करना क्या
कोई दिल तो नहीं है कि ठहर जाएगा