ख़ुदा भी कैसा हुआ ख़ुश मिरे क़रीने पर
मुझे शहीद का दर्जा मिला है जीने पर
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सदाक़त
ख़मोशी की गिरह खोले सर-ए-आवाज़ तक आए
रेत के शानों पे शबनम की नमी रात गए
यक़ीन आज भी वहम-ओ-गुमान में गुम है
किस ने देखी है बहारों में ख़िज़ाँ मेरे सिवा
रह-गुज़र का है तक़ाज़ा कि अभी और चलो
निर्भया की मौत पर
रौनक़-ए-अर्ज़-ओ-समा शम्स ओ क़मर मैं ही हूँ
बयाबाँ को पशेमानी बहुत है
बहकना मेरी फ़ितरत में नहीं पर