इंकार कर रहा हूँ तो क़ीमत बुलंद है
बिकने पे आ गया तो गिरा देंगे दाम लोग
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हमारी राह से पत्थर उठा कर फेंक मत देना
हम आज अपना मुक़द्दर बदल के देखते हैं
तू दरिया है तो होगा हाँ मगर इतना समझ लेना
हमारी ज़िंदगी जैसे कोई शब भर का जल्सा है
यूँ तो ख़ुद अपने ही साए से भी डर जाते हैं लोग
ज़िंदगी वक़्त के सफ़्हों में निहाँ है साहब
निगाहों के मनाज़िर बे-सबब धुंधले नहीं पड़ते
अगर चराग़ भी आँधी से डर गए होते
वो मेरा दोस्त है और मुझ से वास्ता भी नहीं
उम्र-भर दर्द के रिश्तों को निभाने से रहा
बे-लौस मोहब्बत का सिला ढूँढ रहा हूँ
सारी गवाहियाँ तो मिरे हक़ में आ गईं