सारी गवाहियाँ तो मिरे हक़ में आ गईं
लेकिन मिरा बयान ही मेरे ख़िलाफ़ था
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वो मेरा दोस्त है और मुझ से वास्ता भी नहीं
अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना
इस शहर में ख़्वाबों की इमारत नहीं बनती
घर किसी का भी हो जलता नहीं देखा जाता
मिलते हैं मुस्कुरा के अगरचे तमाम लोग
तू दरिया है तो होगा हाँ मगर इतना समझ लेना
ये इश्क़ के ख़ुतूत भी कितने अजीब हैं
हमारी ज़िंदगी जैसे कोई शब भर का जल्सा है
अपने दराज़-क़द पे बहुत नाज़ था जिन्हें
ज़ख़्म अभी तक ताज़ा हैं हर दाग़ सुलगता रहता है