ज़ख़्म अभी तक ताज़ा हैं हर दाग़ सुलगता रहता है
सीने में इक जलियाँ-वाला-बाग़ सुलगता रहता है
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(549) Peoples Rate This
हमारी ज़िंदगी जैसे कोई शब भर का जल्सा है
मिरे ख़याल की पर्वाज़ बस तुम्हीं तक थी
निगाहों के मनाज़िर बे-सबब धुंधले नहीं पड़ते
मिलते हैं मुस्कुरा के अगरचे तमाम लोग
अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना
अपने दराज़-क़द पे बहुत नाज़ था जिन्हें
मरने को मर भी जाऊँ कोई मसअला नहीं
तारीकियाँ क़ुबूल थीं मुझ को तमाम उम्र
जो दश्त में मिला था मुझे इतना याद है
हमारी राह से पत्थर उठा कर फेंक मत देना
ज़िंदगी वक़्त के सफ़्हों में निहाँ है साहब
जब भी उस दीवार से मिलता हूँ रो पड़ता हूँ मैं