उस ज़ुल्फ़ ने हम से ले के दिल बस्ता किया
अबरू ने कजी के ढब को पैवस्ता किया
आँखों ने निगह ने और मिज़ा ने क्या किया
कैफ़ी किया दीवाना किया ख़स्ता किया
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महादेव-जी का ब्याह
सर-चश्मा-ए-बक़ा से हरगिज़ न आब लाओ
किस को कहिए नेक और ठहराइए किस को बुरा
ईसा की क़ुम से हुक्म नहीं कम फ़क़ीर का
देख कर कुर्ते गले में सब्ज़ धानी आप की
न टोको दोस्तो उस की बहार नाम-ए-ख़ुदा
हम उस की जफ़ा से जी में हो कर दिल-गीर
बे-ज़री फ़ाक़ा-कशी मुफ़्लिसी बे-सामानी
जो कहते हो चलें हम भी तिरे हमराह बिस्मिल्लाह
किस के लिए कीजिए जामा-ए-दीबा-तलब
है अब तो वो हमें उस सर्व-ए-सीम-बर की तलब
क़मर ने रात कहा उस की देख कर सूरत